Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Nov, 2023 08:14 AM

‘लाल-पाल-बाल’ की क्रांतिकारी तिकड़ी में से एक, लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के जगराओं के पास ढूढीके गांव में राधा कृष्ण जी के घर माता गुलाब देवी की कोख से अग्रवाल परिवार में हुआ।
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Lala Lajpat Rai death anniversary 2023: ‘लाल-पाल-बाल’ की क्रांतिकारी तिकड़ी में से एक, लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के जगराओं के पास ढूढीके गांव में राधा कृष्ण जी के घर माता गुलाब देवी की कोख से अग्रवाल परिवार में हुआ। पिता अध्यापन का कार्य करते थे और धार्मिक प्रवृत्ति के विद्वान व्यक्ति थे, जिनका पूरा प्रभाव बालक लाजपत राय पर पड़ा।

इनकी उच्च शिक्षा-दीक्षा लाहौर में हुई। वकालत की परीक्षा पास करने बाद जब इनके पिता जी का तबादला हिसार हो गया तो ये वहीं वकालत करने लगे। कई वर्ष तक वहां म्युनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष बन कर जनता की सेवा की। माता-पिता से मिले संस्कारों के कारण बचपन से निर्भीक और साहसी लाजपत राय जी ने देश को अंग्रेजों से मुक्त करवाने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया, जिस पर अंग्रेजों ने इन्हें गिरफ्तार कर मांडले जेल में बंद कर दिया।
जेल से रिहाई के बाद 1914 में कांग्रेस के एक डैपुटेशन में इंगलैंड गए और वहां से जापान चले गए परंतु इसी दौरान प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया और अंग्रेज हुकूमत ने इनके भारत आने पर रोक लगा दी। तब ये जापान से अमरीका चले गए और वहां रह कर देश को आजाद करवाने के लिए प्रयास करने लगे।

विश्व युद्ध की समाप्ति पर स्वदेश लौट कर फिर से सक्रिय हो गए और उन दिनों चल रहे असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 1920 में कलकता में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में इनको प्रधान चुन लिया गया। फिर क्रांतिकारियों के गढ़ लाहौर आकर उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे और पूरे जोश के साथ देश को आजाद करवाने के लिए आजादी के आंदोलन में कूद पड़े।
बंगाल में पड़े भयंकर अकाल में वहां के लोगों की सहायता के लिए स्वयं गांव-गांव घूम कर धन एकत्र किया। युवाओं को शिक्षित और देश भक्ति से ओत-प्रोत करने के लिए इन्होंने अपने पास से उस समय 40 हजार रुपए देकर अपने मित्र के सहयोग से लाहौर में ही दयानंद एंग्लो विद्यालय की स्थापना की।
1928 में देशवासियों की भावनाओं को कुचलने वाले रॉलेट एक्ट नामक काले कानून के विरुद्ध 63 वर्षीय लाजपत राय जी ने लाहौर में खुद कमान संभाल ली। 30 अक्तूबर को साइमन कमीशन के लाहौर पहुंचने पर लाला जी के नेतृत्व में हजारों देशवासियों ने विशाल जलूस निकाल कर स्टेशन पर साइमन कमीशन का ‘साइमन गो बैक’ के नारों से विरोध किया।

इससे क्षुब्ध होकर पुलिस कप्तान स्काट ने लाठीचार्ज का आदेश देकर स्वयं भी लाला जी पर लाठियां बरसाईं, जिससे लाला जी बुरी तरह घायल हो गए। इसके बावजूद लाला जी ने जनसभा को संबोधित करते हुए घोषणा की कि ‘मेरे बदन पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी’।
घायल लाला जी को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, परन्तु वह स्वस्थ न हो सके और आखिर 17 नवम्बर, 1928 को स्वतंत्रता संग्राम के हवन रूपी यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति डाल दी।
