Edited By Sarita Thapa,Updated: 10 Jun, 2025 07:01 AM

Motivational Story: सच्चा साधक पवित्र हृदय लेकर साधना के पथ पर कदम बढ़ाता है, सदुपदेश के एक-एक शब्द को हृदय में रमा लेता है और उन्हें जीवन में उतारने का प्रयत्न करता है। साधना को पोषण देने वाला तत्व कहीं से भी मिलने पर वह उसे ग्रहण करने में संकोच...
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Motivational Story: सच्चा साधक पवित्र हृदय लेकर साधना के पथ पर कदम बढ़ाता है, सदुपदेश के एक-एक शब्द को हृदय में रमा लेता है और उन्हें जीवन में उतारने का प्रयत्न करता है। साधना को पोषण देने वाला तत्व कहीं से भी मिलने पर वह उसे ग्रहण करने में संकोच नहीं करता। प्रतिदिन तथा प्रति समय कुछ न कुछ अच्छाई अपनाने वाला ही साधना-पथ पर अग्रसर होता है और महापुरुष बन सकता है। गुणग्राहकता की पहचान किसी बाहरी चिन्ह से नहीं होती। सर्वत्र अच्छा देखने और बुरा टालने की वृत्ति ही उसकी सच्ची पहचान है। प्रत्येक वस्तु, प्राणी तथा तत्व से गुण खोजने का अभ्यास करना चाहिए क्योंकि संसार में कुछ भी निर्गुण नहीं है।

पापी तथा अधम व्यक्ति में कुछ अच्छाई जरूर हो सकती है जो दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनती है। अपने को पूर्ण तथा दूसरे को अपूर्ण समझने से व्यक्ति साधना-पथ से पराङ्मुख हो जाता है। गुणग्राहक तो संसार में विरले ही मिलते है। कमजोर हृदय वाला व्यक्ति कुछ कदम चलकर लडख़ड़ा कर गिर सकता है और निराश होकर वापस लौटकर आ सकता है।
दृढ़ आत्मशक्ति सारे भय दूर करती है। साधना-पथ पर कदम रखने वाला आत्मशक्ति रूपी हथियार से सुसज्जित न होने पर भय के भूतों से नहीं लड़ सकता। दुख-तकलीफों द्वारा बार-बार प्रताड़ित किए जाने पर भी धैर्य का सम्बल न छोडऩे वाला शक्तिशाली माना जाता है। आत्मशक्ति इतनी बलवान है कि इसके बलबूते महाबली दैत्यों का भी सामना कर उन्हें धूल चटाई जा सकती है। अपनी आत्मा की अनंत शक्ति पर दृढ़ विश्वास रखने वाला अपने साध्य की प्राप्ति में असफल नहीं हो सकता। आत्मबली व्यक्ति परम साहसी हो जाता है। साहस होने पर अनेक अन्य गुण भी उसमें स्वयं ही आ जाते हैं।

साहस मानवीय गुणों में पहला गुण है क्योंकि यह सभी गुणों का उत्तरदायित्व ले लेता है। आत्मशक्ति से सम्पन्न साहसी व्यक्ति का विश्वास ऐसा किला है जो कोई भी भेद नहीं सकता। साधना पथिक को अपनी आत्मा को कभी निर्बल नहीं मानना चाहिए। यही कामना होनी चाहिए कि आत्मा इतनी बलवान बन जाए कि वह कभी भी और कैसे भी संकट में विचलित न हो। अपने आप को मजबूत बनाकर व्यक्ति कभी दूसरे का आश्रय लेने की इच्छा भूलकर भी न करे।
