Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Nov, 2022 09:30 AM
संतों की भूमिका संतान के निर्माण में पहला कार्य मां का, दूसरा पिता का और तीसरा गुरु का। मां सात साल तक सीख देती है। पिता साठ साल तक सीख देता है और गुरु सात जन्मों तक की सीख देता है।
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संतों की भूमिका
संतान के निर्माण में पहला कार्य मां का, दूसरा पिता का और तीसरा गुरु का। मां सात साल तक सीख देती है। पिता साठ साल तक सीख देता है और गुरु सात जन्मों तक की सीख देता है। मां ने जन्म दिया, पिता ने जमीन दी और गुरु ने जीवन दिया। मां ने बचपन संभाला, पिता ने जवानी संभाली और गुरु ने बुढ़ापे व मौत को संभाला। जीवन और समाज में संत-मुनियों की भूमिका ट्रैफिक पुलिस के समान है। जिस तरह ट्रैफिक पुलिस का काम यातायात को नियंत्रित करना है, उसी प्रकार संतों का काम समाज में उत्पन्न गतिरोधों को दूर करना है।
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इतने सवाल क्यों
श्रद्धा नाव है। इससे भवसागर पार उतर सकते हैं। ज्ञान टार्च है। इससे अंधेरी रातों में, अंधेरी राहों में सफर किया जा सकता है। चरित्र इत्र है। इससे जीवन को सुगंधमय बनाया जा सकता है। हार्ट फेल हो जाए तो कोई गम नहीं लेकिन श्रद्धा फेल हो गई तो दस सवाल खड़े कर देते हैं लेकिन दर्जी को कपड़ा सौंपते वक्त और गाड़ी में चढ़कर ड्राइवर को जिंदगी सौंपते वक्त तो नहीं सोचते कि यह विश्वास पर खरा उतरेगा या नहीं। फिर धर्म पर आस्था रखने पर इतने सवाल क्यों ?