Nag Panchami 2022: ये है नाग देवता से जुड़ी अजब-गजब जानकारी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Aug, 2022 07:51 AM

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नाग महाभारत, रामायण से लेकर उपनिषदों, पुराणों और कई अन्य मिथक ग्रंथों में देवता के रूप में मान्यता पाते हैं। श्रावण शुक्ल पंचमी के स्वामी नाग देवता हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि पृथ्वी

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Nag Panchami 2022: नाग महाभारत, रामायण से लेकर उपनिषदों, पुराणों और कई अन्य मिथक ग्रंथों में देवता के रूप में मान्यता पाते हैं। श्रावण शुक्ल पंचमी के स्वामी नाग देवता हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि पृथ्वी शेषनाग के सिर पर टिकी हुई है। माना जाता है कि जैसे-जैसे पृथ्वी पर पाप कर्म बढ़ते हैं, शेषनाग क्रोधित होकर अपने फन को हिलाते हैं इससे पृथ्वी डगमगा जाती है। इसी पुरातन किंवदंती के कारण नाग पूजा का प्रचलन प्रारंभ हुआ। वैसे तो व्यावहारिक रूप से सर्प सम्पूर्ण पृथ्वी पर मौजूद है। सागर से लेकर रेगिस्तान तक और पर्वत से लेकर मैदान तक सर्प जाति प्रकृति और मानव के संबंधों में महत्वपूर्ण कड़ी है। हिन्दू धर्मग्रंथों में नाग जाति का संबंध अनेक रूपों में अलग-अलग देवी-देवताओं से बताया गया है।

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नाग वेदों से पहले के देवता हैं। नाग देवता का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। नागपूजा का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। मोहन जोदड़ो, हड़प्पा और सिंधु सभ्यता की खुदाई में प्राप्त प्रमाणों से पता चलता है कि उस काल में भी नाग की पूजा होती थी। भगवान शिव के गले का आभूषण नागदेवता ही हैं, वहीं श्री हरि विष्णु शेष शैय्या पर विराजमान हैं। श्री कृष्ण व कालियनाग की कथा हम बचपन से ही सुनते आए हैं। माता मनसा नागों की देवी हैं। बाबा बालक नाथ के साथ भी नाग रहते हैं। भगवान बुद्ध तथा जैन मुनि पाश्र्वनाथ के रक्षक नाग देवता माने जाते हैं। रामायण में विष्णु भगवान के अवतार श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण और महाभारत के श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम को शेषनाग का अवतार बताया गया है। सभी लोगों को सर्प दंश से बचने के लिए भाद्रपद कृष्ण पंचमी वाले दिन 2 नागों को दूध पिलाना चहिए।

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सर्वविदित है कि वर्षा ऋतु ही सर्पों के निकलने का समय होता है अथवा अधिकांश ग्रीष्म ऋतु में नाग देवता बाहर आते हैं। महाशिवरात्रि वाले दिन भगवान भोले भंडारी अपनी झोली से विषैले जीवों को भूमि पर विचरने के लिए छोड़ देते हैं और जन्माष्टमी वाले दिन उन्हें पुन: अपनी झोली में समेट लेते हैं। वर्षा ऋतु में नाग बिलों में पानी भर जाने के कारण बाहर आ जाते हैं। इसी कारण प्रत्यक्ष नाग पूजन का समय नागपंचमी वाला दिन विशेष महत्व रखता है।

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गौरी पूजन प्रसंग में हिन्दू महिलाएं बांझपन को दूर करने के लिए नागपूजा करती हैं। कश्मीर के अनेक चश्मे एवं जल स्रोतों के नाम नागों के नाम पर पड़े हैं। जैसे अनंतनाग, भैरो नाग आदि। अग्रि पुराण में तो स्पष्ट लिखा है कि शेष आदि सर्पराजों का पूजन पंचमी को होना चाहिए। सुगंधित पुष्प तथा दूध नागों को अतिप्रिय है। 

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