Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Sep, 2023 10:04 AM
एक कवि ने क्या खूब लिखा है-जिंदगी का सफर कुछ यूं आसां कर लिया, कुछ से माफी मांग ली, कुछ को माफ कर दिया। राह के कांटों के मुकाबले दिल में लगे कांटे असंदिग्ध रूप से ज्यादा पीड़ाकारी
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Samvatsari: एक कवि ने क्या खूब लिखा है-जिंदगी का सफर कुछ यूं आसां कर लिया, कुछ से माफी मांग ली, कुछ को माफ कर दिया। राह के कांटों के मुकाबले दिल में लगे कांटे असंदिग्ध रूप से ज्यादा पीड़ाकारी होते हैं। ऐसे में हमें आवश्यकता है कवि के शब्दों को अपनाने की।
यही संदेश अढ़ाई हजार वर्ष पहले जैनधर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने भी दिया, न सिर्फ संदेश दिया, बल्कि इसे एक पर्व का रूप दे दिया। आज भी भादवा सुदी पंचमी के दिन जैन समाज में संवत्सरी महापर्व तप, त्याग व क्षमा भाव के साथ मनाया जाता है। इस दिन पुरानी बातों को भुलाकर अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना की जाती है व उदार हृदय से औरों की गलतियों के लिए क्षमादान किया जाता है।
भगवान महावीर स्वामी का संदेश है कि जो व्यक्ति घटना के एक वर्ष बाद भी अपने मन से द्वेष व वैर भाव से मुक्त नहीं हो पाता, बल्कि रंजिशों को बढ़ाता ही चला जाता है, उसकी आत्मा के प्रेम के पौधे जल जाते हैं तथा प्रेमहीन व्यक्ति के हृदय में धर्म की फसल पैदा नहीं हो सकती।
माफ करना अमृत पीने जैसा है। माफ करने से हमें सामने वाले के प्रति बैर का भार अपने दिमाग में नहीं रखना पड़ता। बैर का विषय बेशक सामने वाला है, पर बैर का भार और दर्द तो बैर रखने वाले को ही ढोना पड़ता है, जो निश्चित ही दुख रूप है। अत: बैर भाव से मुक्त होकर क्षमाभाव का अमृतपान करें, ताकि आपका मन निर्भय रहे, दिन चैन से कटे व आपकी रातें आराम से बीतें।
—मुनि वीरेंद्र
(लेखक गुरु सुदर्शन संघ के युवा संत हैं)