Sita Navami : जल्द से जल्द शादी के लड्डू खाने के लिए आज जरूर करें ये काम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Apr, 2023 07:35 AM

sita navami

हिंदू धर्म में सीता नवमी के पर्व को बहुत ही खास माना जाता है। ये पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस रोज राजा जनक के घर माता लक्ष्मी ने सीता के रूप

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Sita Navami 2023: हिंदू धर्म में सीता नवमी के पर्व को बहुत ही खास माना जाता है। ये पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस रोज राजा जनक के घर माता लक्ष्मी ने सीता के रूप में अवतार लिया था। सीता नवमी का महत्व राम नवमी के जितना ही है। माता सीता अपने त्याग और समर्पण के रूप में पूजनीय हैं। आज के दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। विशेष तौर पर कुंवारी कन्याएं अपना मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए आज के दिन जनक दुलारी की पूजा करती हैं। इसी के साथ आज माता सीता और श्री राम की पूजा करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है और वैवाहिक सुख के साथ धन से जुड़ी सारी परेशानियां जड़ से खत्म हो जाती हैं।

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Benefits of reading sita chalisa सीता चालीसा पढ़ने के फायदे: जो कुंवारे जल्द से जल्द शादी के लड्डू खाने के लिए बेताब हैं, वो जनक नंदनी की चालीसा जरुर पढ़ें। मान्यता है की जिनकी शादी न हो रही हो, शादी में अनचाही बाधाएं आ रही हों उन्हें प्रतिदिन श्री सीता चालीसा का पाठ करना चाहिए। माता सीता के आशीर्वाद से व्यक्ति की बुद्धि तेज होती है और कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं देखनी पड़ती। पति की दीर्घायु के लिए भी सीता चालीसा का पाठ करना शुभ माना जाता है। संपूर्ण श्री सीता चालीसा इस प्रकार है-

Shree Sita Chalisa श्री सीता चालीसा

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                                         ॥ दोहा ॥
बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम, राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥
कीरति गाथा जो पढ़ें सुधरैं सगरे काम, मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम ॥

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                                        ॥ चौपाई ॥
   राम प्रिया रघुपति रघुराई बैदेही की कीरत गाई ॥
 चरण कमल बन्दों सिर नाई, सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥
 जनक दुलारी राघव प्यारी, भरत लखन शत्रुहन वारी ॥
 दिव्या धरा सों उपजी सीता, मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥
 सिया रूप भायो मनवा अति, रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥
भारी शिव धनु खींचे जोई, सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥
भूपति नरपति रावण संगा, नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥
जनक निराश भए लखि कारन , जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ॥
यह सुन विश्वामित्र मुस्काए, राम लखन मुनि सीस नवाए ॥
आज्ञा पाई उठे रघुराई, इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ॥
जनक सुता गौरी सिर नावा, राम रूप उनके हिय भावा ॥
मारत पलक राम कर धनु लै, खंड खंड करि पटकिन भू पै ॥
जय जयकार हुई अति भारी, आनन्दित भए सबैं नर नारी ॥
सिय चली जयमाल सम्हाले, मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥
मंगल बाज बजे चहुं ओरा, परे राम संग सिया के फेरा ॥
लौटी बारात अवधपुर आई, तीनों मातु करैं नोराई ॥
कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा, मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ॥
कौशल्या सूत भेंट दियो सिय, हरख अपार हुए सीता हिय ॥
सब विधि बांटी बधाई, राजतिलक कई युक्ति सुनाई ॥
मंद मती मंथरा अडाइन, राम न भरत राजपद पाइन ॥
कैकेई कोप भवन मा गइली, वचन पति सों अपनेई गहिली ॥
चौदह बरस कोप बनवासा, भरत राजपद देहि दिलासा ॥
आज्ञा मानि चले रघुराई, संग जानकी लक्षमन भाई ॥
सिय श्री राम पथ पथ भटकैं , मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥
राम गए माया मृग मारन, रावण साधु बन्यो सिय कारन ॥
भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो, लंका जाई डरावन लाग्यो ॥
राम वियोग सों सिय अकुलानी, रावण सों कही कर्कश बानी ॥
हनुमान प्रभु लाए अंगूठी, सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥
अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा, महावीर सिय शीश नवावा ॥
सेतु बांधी प्रभु लंका जीती, भक्त विभीषण सों करि प्रीती ॥
चढ़ि विमान सिय रघुपति आए, भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ॥
अवध नरेश पाई राघव से, सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥
रजक बोल सुनी सिय बन भेजी, लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥
बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो, लवकुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ॥
विविध भांती गुण शिक्षा दीन्हीं, दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥
लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी,रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥
भूलमानि सिय वापस लाए, राम जानकी सबहि सुहाए ॥
सती प्रमाणिकता केहि कारन, बसुंधरा सिय के हिय धारन ॥
अवनि सुता अवनी मां सोई, राम जानकी यही विधि खोई ॥
पतिव्रता मर्यादित माता, सीता सती नवावों माथा ॥

                   ॥ दोहा ॥
जनकसुत अवनिधिया राम प्रिया लवमात,
चरणकमल जेहि उन बसै सीता सुमिरै प्रात ॥

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