मां इंदिरा गांधी के नहीं, इनके कहने पर राजनीति में आए थे राजीव गांधी

Edited By Seema Sharma,Updated: 21 May, 2018 11:54 AM

rajiv gandhi came into politics to requested on osho secretary lakshmi

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की 1980 में प्लेन क्रैश में मौत हो जाने के बाद राजीव गांधी को राजनीति में लाने की मांग उठी। खुद इंदिरा गांधी चाहती थी कि उनका बड़ा बेटा अब पार्टी की कमान संभाले लेकिन तब राजीव गांधी की...

नेशनल डेस्कः तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की 1980 में प्लेन क्रैश में मौत हो जाने के बाद राजीव गांधी को राजनीति में लाने की मांग उठी। खुद इंदिरा गांधी चाहती थी कि उनका बड़ा बेटा अब पार्टी की कमान संभाले लेकिन तब राजीव गांधी की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि वे राजनीति को अच्छा नहीं मानते थे। इंदिरा ने राजीव को काफी समझाया लेकिन वे नहीं मानें।
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जब इंदिरा ने देखा कि राजीव अपना मन पक्का करके बैठे हैं और उनके समझाने पर भी कोई असर नहीं हो रहा तो उन्होंने बेटे को मनाने की जिम्मेदारी धर्मगुरु ओशो की सेक्रेटरी लक्ष्मी को सौंपी। इस बात का दावा राशिद मैक्सवेल की किताब द ओनली लाइफ, ओशो लक्ष्मी एंड द व‌र्ल्ड इन क्राइसिस में किया गया है। किताब में ओशो की सचिव को लेकर तमाम पहलुओं के बारे में लिखा गया जिनमें से एक राजीव गांधी के ऊपर भी है।
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इंदिरा का धार्मिक कार्यों में था झुकाव
किताब में दावा किया गया कि अपने पिता जवाहर लाल नेहरू की तरह इंदिरा का भी धार्मिक कार्यों की तरफ काफी झुकाव था। वे कई धर्म गुरुओं से व्यक्तिगत तौर पर संपर्क में भी थीं जिनमें से एक ओशो भी थे। इंदिरा ओशो का काफी सम्मान करती थीं लेकिन वे अक्सर उनसे मिलने से बचती थी क्योंकि उस समय वे काफी विवादित शख्सियत थे।
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लक्ष्मी को मिला था ग्रीन पास
1977 में एमरजेंसी के बाद जब सत्ता चली तो इंदिरा को विपक्ष में बैठना पड़ा। उस दौरान उन्होंने लक्ष्मी को अपने खास लोगों में शुमार किया। लक्ष्मी को ग्रीन पास दिया गया था। ग्रीन पास का मतलब था कि लक्ष्मी कभी भी किसी समय इंदिरा से आकर  मुलाकात कर सकती हैं।
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राजीव-लक्ष्मी के बीच चली लंबी मुलाकात
1980 में इंदिरा ने राजीव को सत्ता संभालने के लिए कहा लेकिन जब वे नहीं मानें तो लक्ष्मी को बुलाया गया ताकि वे राजीव को मना सकें। लक्ष्मी की राजीव के साथ काफी लंबी मुलाकात चली। राजीव तब पायलट थे और इस करियर को छोड़ना नहीं चाहते थे लेकिन काफी लंबी चर्चा के बाद आखिर राजीव मान गए और उन्होंने राजनीति में आकर एक नए युग का आगाज किया। राजीव 1984 में अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारी बहुमत के साथ 40 साल की आयु में भारत के प्रधानमंत्री बने थे। 21 मई, 1991 को लिट्टे उग्रवादियों ने राजीव गांधी की हत्या कर दी। तमिल विद्रोहियों का संगठन लिट्टे श्रीलंका में शांति सेना भेजने के कारण राजीव गांधी से नाराज था।

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