HIV-AIDS Crisis Returns: 4 साल में 40 लाख मौतें! एक फैसले से पूरी दुनिया पर मंडरा रहा है HIV/AIDS का खतरा

Edited By Updated: 11 Jul, 2025 12:28 PM

america one decision could lead to 4 million deaths in just 4 years

एक जानलेवा वायरस जिसे काबू में लाने की कोशिशों को दुनिया ने पिछले दो दशकों में नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया, अब फिर से मौत का कारण बन सकता है। HIV/AIDS के खिलाफ जंग जीतने की उम्मीद तब टूट गई जब अमेरिका ने अचानक उस अंतरराष्ट्रीय फंडिंग को बंद कर दिया...

नेशनल डेस्क: एक जानलेवा वायरस जिसे काबू में लाने की कोशिशों को दुनिया ने पिछले दो दशकों में नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया, अब फिर से मौत का कारण बन सकता है। HIV/AIDS के खिलाफ जंग जीतने की उम्मीद तब टूट गई जब अमेरिका ने अचानक उस अंतरराष्ट्रीय फंडिंग को बंद कर दिया जिसने अब तक करोड़ों जिंदगियों को बचाया था। UNAIDS की ताजा रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर यह आर्थिक मदद जल्द बहाल नहीं हुई तो 2029 तक यानी अगले चार वर्षों में करीब 40 लाख लोगों की मौत हो सकती है और 60 लाख से अधिक नए संक्रमण के मामले सामने आ सकते हैं। ये कोई सामान्य चेतावनी नहीं, बल्कि एक वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल का संकेत है। सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो पूरी दुनिया को फिर से HIV/AIDS के अंधेरे दौर की ओर धकेल रहा है? जवाब आपको आगे की रिपोर्ट में मिलेगा।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNAIDS ने चेतावनी दी है कि अगर यह फंडिंग दोबारा शुरू नहीं हुई तो अगले चार सालों में यानी 2029 तक 40 लाख लोग अपनी जान गंवा सकते हैं और करीब 60 लाख नए HIV संक्रमण के मामले सामने आ सकते हैं।

20 साल पुरानी योजना का अचानक अंत

साल 2003 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 'PEPFAR' (President’s Emergency Plan for AIDS Relief) नाम का एक कार्यक्रम शुरू किया था। यह HIV के खिलाफ दुनिया का सबसे बड़ा विदेशी मदद वाला प्रोग्राम था। इस योजना के तहत अब तक 8 करोड़ से ज़्यादा लोगों की HIV जांच हो चुकी है और 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त इलाज मिला है। PEPFAR ने न केवल इलाज मुहैया कराया बल्कि जागरूकता फैलाने और दवाइयों की सप्लाई चेन को मज़बूत करने में भी अहम भूमिका निभाई। अफ्रीका जैसे महाद्वीपों में इसका असर सबसे ज्यादा था। उदाहरण के तौर पर, नाइजीरिया में मिलने वाली 99.9% HIV दवाइयाँ इसी प्रोग्राम के तहत आती थीं। लेकिन जनवरी 2025 में अमेरिका ने इस फंडिंग को अचानक बंद कर दिया जिससे हजारों क्लीनिक बंद हो गए और कई जगहों पर इलाज पूरी तरह रुक गया।

एक फैसले से बिगड़ गया हेल्थ सिस्टम

UNAIDS की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका की इस मदद के रुकने से कई देशों में HIV के खिलाफ काम कर रहीं संस्थाओं को अपनी सेवाएं बंद करनी पड़ी हैं। HIV की जांच और दवाओं का वितरण ठप हो गया है। हजारों स्वास्थ्य कर्मचारी बेरोज़गार हो गए हैं और सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसके अलावा अमेरिका न केवल पैसे देता था बल्कि वह HIV से जुड़ा डेटा भी जुटाता था जो आगे की योजना बनाने में मदद करता था। अब जब डेटा कलेक्शन रुक गया है तो नीति निर्धारण और मरीजों की निगरानी पर भी असर पड़ रहा है।

नया इलाज, लेकिन कीमत बनी दीवार

इस संकट के बीच एक नई दवा Yeztugo ने उम्मीदें तो जगाई हैं। यह दवा हर 6 महीने में केवल एक बार लेने से HIV संक्रमण को रोकने में पूरी तरह असरदार साबित हुई है। अमेरिका की FDA ने इसे मंजूरी दे दी है और दक्षिण अफ्रीका ने इसे लागू करने की योजना भी बना ली है। मगर चुनौती यह है कि इस दवा की निर्माता कंपनी Gilead ने इसे केवल गरीब देशों को सस्ती दरों पर देने की बात की है। लैटिन अमेरिका जैसे मिड-इनकम देशों को इस सूची से बाहर कर दिया गया है। यानी जहां HIV का प्रसार सबसे अधिक है वहां यह दवा नहीं पहुंच पाएगी।

क्या दोबारा लौटेगा फंड?

इस समय सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या अमेरिका फिर से HIV फंडिंग शुरू करेगा? UNAIDS और WHO जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने अमेरिका से अपील की है कि वह PEPFAR जैसी मदद को दोबारा शुरू करे वरना इसका असर आने वाली पीढ़ियों तक रहेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ मेडिकल मदद नहीं थी बल्कि एक सामाजिक सुरक्षा चक्र था जिसने लाखों लोगों की ज़िंदगी बचाई। अगर यह समर्थन दोबारा नहीं मिला तो दुनिया फिर से उसी अंधेरे दौर में लौट सकती है जब HIV एक मौत का फरमान हुआ करता था।

 

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