तमिलनाडु: यहां होती है श्री गणेश की नरमुखी प्रतिमा की पूजा

Edited By Jyoti,Updated: 07 Sep, 2019 02:35 PM

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यूं तो देश में भगवान गणेश के कई मंदिर हैं जो अपनी प्राचीनता के चलते काफी प्रसिद्धि हासिल किए हुए हैं। कहीं बप्पा को सिद्धि विनायक गणपति के रूप में पूजा जाता है तो कहीं इनकी राजा के रूप में आराधना की जाती है।

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यूं तो देश में भगवान गणेश के कई मंदिर हैं जो अपनी प्राचीनता के चलते काफी प्रसिद्धि हासिल किए हुए हैं। कहीं बप्पा को सिद्धि विनायक गणपति के रूप में पूजा जाता है तो कहीं इनकी राजा के रूप में आराधना की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा भी मंदिर है जहां विघ्नहर्ता गणेश को नर रूप में पूजा जाता है। जी हां, आपको शायद सनुकर हैरानी ही मगर भारते के तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले में एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान गणेश की बाकि मंदिरो से अलग प्रतिमा स्थापित है। जिस कारण इस मंदिर को देश के सभी गणपति मंदिरों से विभिन्न माना जाता है। तो आइए विस्तारपूर्वक जानें इस अद्भुत मंदिर के बारे में जो अपने साथ कितनी खूबियां लिए हुए हैं।
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बता दें बप्पा का ये मंदिर तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले के शहर कुटनूर से करीब 3 कि.मी. दूर तिलतर्पण पुरी में स्थित है, जिसे आदि विनायक मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है ये मंदिर यहां के लोगों के साथ अन्य देशों-विदशों से आने वाले लोगों की भी आस्था का केंद्र है।

मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है यहां स्थापित श्री गणेश की नरमुखी प्रतिमा यानि इंसान स्वरूप प्रतिमा। आप में से बहुत से लोग जानते होंगे आमतौर देश में पाए जाने वाले समस्त गणेश मंदिरों  अलावा देश के लगभग सभी मंदिरों में भगवान गणेश के गजमुखी रुपी प्रतिमा की पूजा की जाती है। लेकिन बताया जाता है कि ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां गणपति जी का चेहरा गज के जैसा नहीं बल्कि इंसान के जैसा है। जो इस मंदिर की सुप्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण है। इसके अलावा बताया जाता है ये यह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां श्रद्धालु अपने पितरों की शांति के लिए पूजा करने भी आते हैं।
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इसलिए कहा जाता है तिलतर्पणपुरी
अगर पौराणिक मान्यताओं की मानें तो इस स्थान पर भगवान श्री राम ने पितरों की शांति के लिए धार्मिक अनुष्ठान किया था। भगवान राम के द्वारा शुरू की गई इस परंपरा के चलते आज भी यहां लोग अपने पूर्वजों की शांति के लिए पूजा-पाठ करवाने आते हैं। यही कारण है की इस मंदिर को तिलतर्पणपुरी भी कहा जाता है। हालांकि पितरों की शांति के लिए पूजा सामान्यतः नदी के तट पर की जाती है, लेकिन धार्मिक अनुष्ठान मंदिर के अंदर किए जाते हैं।

बता दें यहां न केवल श्री गणेश की बल्कि भोलेनाथ जी की भी पूजा की जाती है। साथ ही साथ यहां मां सरस्वती का भी मंदिर स्थित है। वैसे तो इस मंदिर में विशेष रूप से भगवान गणेश की ही पूजा की जाती है। लेकिन यहां आने वाले श्रद्धालु आदि विनायक के साथ मां सरस्वती और भगवान शिव के मंदिर पर मत्था जरूर टेकते हैं।

भगवान राम से जुड़ी मान्यता-
कथाओं के मुताबिक जब भगवान राम अपने पिता का अंतिम संस्कार कर रहे थे, तो उनके द्वारा रखे गए चार पिंड (चावल के लड्डू) कीड़ों के रूप में तब्दील हो गए थे। ऐसा एक बार नहीं बल्कि जितनी बार श्री राम द्वारा पिंड बनाया उतनी बार हुआ। जिसके बाद श्री राम ने शिव जी से प्रार्थना कि। भगवान शिव ने उन्हें आदि विनायक मंदिर में विधि-विधान से पूजा करने को कहा।
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अपने प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए श्री राम यहां आए और उन्होंने अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए यहां पूजा की। कहा जाता चावल के वो चार पिंड चार शिवलिंग में बदल गए थे। वर्तमान में ये चार शिवलिंग आदि विनायक मंदिर के पास स्थित मुक्तेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं।
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