मानो या न मानो: स्वस्थ जीवन का गुरुमंत्र है व्रत-उपवास

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Dec, 2022 09:47 AM

fasting is the guru mantra for healthy life

‘सीधा मन पर अनुशासन हो जाए’- यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है और तर्कयुक्त लगता है कि जब मन पर ही अनुशासन साधना है तो फिर इतनी लंबी प्रक्रिया की क्या जरूरत है? इतना लंबा मार्ग क्यों?

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संस्कृत व्याकरण में निष्णात होने वाले जानते हैं कि उन्हें केवल शब्दानुशासन ही नहीं पढ़ना पड़ता है, उन्हें इसके साथ-साथ छन्दोनुशासन, लिंगानुशासन आदि-आदि भी पढ़ने पड़ते हैं। जब सारे अनुशासन हस्तगत हो जाते हैं तब शब्दानुशासन पढ़ने का कोई अर्थ होता है।

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लोग चाहते हैं कि आहार जैसा चल रहा है, वैसा ही चले। उस पर अनुशासन की जरूरत क्या है? मन का और आहार का क्या संबंध? स्थिर करना है मन को। मन पर अनुशासन साधना है तो भोजन के अनुशासन का इसके साथ क्या संबंध? भोजन का संबंध है पेट से, लिवर से, आमाशय, आंतों से और जीभ से तथा मुंह की लार से। मन के साथ उसका क्या संबंध है कि साधक सबसे पहले आहार का अनुशासन करे, सीखे।

उपवास के विषय में आज जितनी वैज्ञानिक खोजें हुई हैं, पहले नहीं हुई थीं। प्राचीन साहित्य में तपस्या करने पर बहुत बल दिया गया किंतु उसके लाभ-अलाभ को विस्तृत चर्चा नहीं की गई। आज इसका वैज्ञानिक ढंग से निरूपण उपलब्ध है। उपवास पर बहुत बड़ा साहित्य उपलब्ध है। भोजन विषयक साहित्य भी प्रचुर है। कम खाने से क्या लाभ है और अधिक खाने से कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं, इनका पूरा विवेचन साहित्य में प्राप्त है।

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उपवास करना या कम खाना कठिन बात है। आज का आदमी इतना चाटू हो गया है कि यदि भोजन में मसाले कम हों, नमक-मिर्च कम हों या न हों तो उसे वह भोजन अटपटा-सा लगने लगता है। वह मानता है कि यह तो पशुओं का भोजन है। पशु मसाले नहीं खाते, नमक और मिर्च नहीं खाते। जो सहज निष्पन्न है वही खा लेते हैं। बिना मसाले का भोजन, बिना नमक-मिर्च का भोजन आदमी का भोजन नहीं है, पशु का भोजन है। यह भ्रांत विचार है।

व्रत रूढि़ नहीं है, यह जीवन का प्रयोग है। व्रत का बहुत बड़ा महत्व है। लोगों ने व्रत को रूढि़ मान लिया है। व्यक्ति ने यह व्रत लिया कि आज मैं नमक नहीं खाऊंगा या चीनी नहीं खाऊंगा। यह रूढि़ कैसे? यह तो प्रयोग है। व्यक्ति जानना चाहता है कि नमक न खाने का क्या परिणाम होता है? चीनी न खाने का क्या परिणाम होता है? हमारे पास अभी तक इतने संवेदनशील उपकरण नहीं है जिनसे प्रत्यक्षत: अनुमापन किया जा सके कि आज नमक या चीनी न खाने से शरीर की रक्त-प्रक्रिया में क्या परिणाम हुआ? शरीर पर उसका क्या प्रभाव पड़ा? वैज्ञानिकों ने प्रयोग कर, परिणामों को जाना है।

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आज पोषणशास्त्र और भोजनशास्त्र के अनुसार यह प्रमाणित होता है कि सोडियम का जितना प्रयोग होता है, उतना ही पोटाशियम कम होने लग जाता है। पोटाशियम के कम होने का अर्थ है- जीवनशक्ति का कम होने लग जाना। हमारी जीवनशक्ति के लिए, कोशिकाओं के पोटाशियम की मात्रा का कम होना बहुत जरूरी होता है और पोटाशियम का बहाव इस नमक के कारण ज्यादा होता है।

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यदि हमारे पास ये सारे उपकरण हों तो प्रत्येक बात को प्रमाणित किया जा सकता है। व्रत बहुत बड़ा आलंबन है। हम उसका कम मूल्यांकन न करें। रूढि़ को छोड़ दें। मैं रूढ़ि का समर्थन नहीं कर रहा हूं। हम प्रायोगिक दृष्टि से व्रतों का मूल्यांकन करें। हम यह समझें कि जितने व्रत हैं, वे सब प्रायोगिक हैं।

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