Root of sin: आप भी रखते हैं पाप का मूल जानने की इच्छा तो पढ़ें ये कथा

Edited By Updated: 30 Apr, 2025 07:40 AM

root of sin

Root of sin: काशी आदि स्थानों से विभिन्न धर्म ग्रंथों का अध्ययन कर जब ब्राह्मण अपने नगर में लौटा तो सभी नगरवासियों ने उसका भव्य स्वागत किया। नगर में ब्राह्मण के समान अन्य कोई विद्वान नहीं था। जब कोई अपने आपके विद्वान होने की बात करता तो ब्राह्मण उसे...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
 
Root of sin:
काशी आदि स्थानों से विभिन्न धर्म ग्रंथों का अध्ययन कर जब ब्राह्मण अपने नगर में लौटा तो सभी नगरवासियों ने उसका भव्य स्वागत किया। नगर में ब्राह्मण के समान अन्य कोई विद्वान नहीं था। जब कोई अपने आपके विद्वान होने की बात करता तो ब्राह्मण उसे शास्त्रार्थ में पछाड़ देता। इस कारण ब्राह्मण की विद्वान होने की र्कीत बढ़ गई। अपनी बढ़ी र्कीत के कारण उसे गर्व होने लगा। अचानक नगर में एक रमता संन्यासी आया, जिसने नगर के विभिन्न क्षेत्रों में धर्मोपदेश देकर वाहवाही लूटनी शुरू की। संन्यासी की बढ़ती र्कीत को देख कर विद्वान ब्राह्मण को ईर्ष्या होने लगी और उसने उसे शास्त्रार्थ में पछाड़ने की ठान ली। ब्राह्मण संन्यासी की धर्मसभा में गया। लोग संन्यासी के उपदेश सुनकर बड़े प्रभावित हुए और जाते-जाते ब्राह्मण के मुख पर संन्यासी की तारीफ करते गए, जिससे ब्राह्मण मन ही मन बड़ा क्रोधित हुआ।

Root of sin

ब्राह्मण ने संन्यासी से कुछ शास्त्रों की बात करनी चाही। संन्यासी ने ब्राह्मण को कहा- आप जब भी आपकी इच्छा से आ जाना, हम शास्त्रों पर चर्चा करेंगे। ब्राह्मण ने संन्यासी से सार्वजनिक प्रवचन के बाद मिलने का तय किया। दोपहर को ब्राह्मण संन्यासी के साधना स्थल पर पहुंचा। दोनों में धर्म-कर्म की चर्चा हुई। ब्राह्मण ने संन्यासी को नीचा दिखाने के लिए एक सीधा प्रश्न किया- संन्यासी बाबा, पाप का मूल क्या है?

संन्यासी समझ गया कि ब्राह्मण शास्त्रों की चर्चा करने की बजाय मुझे नीचा दिखाने का प्रयास कर रहा है। तब उसने कहा- आप कल इसी समय आना आपको उत्तर मिल जाएगा।

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ब्राह्मण संन्यासी के साधना स्थल पर आया और उस पर अपने प्रश्र पाप का मूल क्या है का उत्तर देने के लिए दबाव डालने लगा। तब संन्यासी ने कहा- ब्राह्मण देवता, शास्त्रों की बात कर रहे हैं, लेकिन इस स्थान पर कुत्ता मरा पड़ा है। जब तक इसे यहां से नहीं हटाया जाएगा तब तक धर्म चर्चा करना उचित नहीं। ब्राह्मण भी इस तर्क से सहमत हो गया और मन में सोचा कि संन्यासी को मेरे प्रश्र का जवाब नहीं आ रहा, अत: टाल-मटोल कर रहा है।

इस चर्चा के दौरान संन्यासी ने अपने एक कपड़े में बंधे हुए दो हीरे निकाले, जो इन्होंने किसी भक्त से पहले मंगाकर रखे थे। हीरे और हीरों की चमक देख ब्राह्मण का जी उन्हें प्राप्त करने को मचल उठा।

ब्राह्मण के मुखारबिंद को देख कर संन्यासी ने कहा- पंडित जी ! यदि आप इस मेरे कुत्ते को नगर से बाहर फैंक आएं तो आपको मैं एक हीरा दूंगा और जब आप वापस मेरे पास पधारेंगे तो दूसरा हीरा आपको दे दूंगा।

दो हीरों को प्राप्त करने के लिए विद्वान ब्राह्मण मरे कुत्ते की लाश को उठाकर रातों-रात नगर के बाहर फैंक आया। कुत्ते की लाश उठाते समय संन्यासी ने ब्राह्मण को एक हीरा दे दिया था। ब्राह्मण ने कुत्ते की लाश फैंक कर जब संन्यासी के पास आकर दूसरा हीरा मांगा तो संन्यासी ने कहा- ब्राह्मण देवता, आपने मुझसे प्रश्र किया था कि पाप का मूल क्या है?

संन्यासी ने दूसरा हीरा ब्राह्मण के हाथ में रखते हुए कहा, बस यही लोभ है, जो नहीं करने वाले कार्य को करवा देता है। ब्राह्मण संन्यासी के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा मांगते हुए दोनों हीरे उसको लौटा दिए।

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