Tulsi Vivah: Oh! तो ऐसे बनी राक्षस की पत्नी श्री हरि विष्णु प्रिया

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Nov, 2022 09:21 AM

tulsi marriage

प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा ही वीर और पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वविजयी बना हुआ था।

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Tulsi vivah story: प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा ही वीर और पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वविजयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से भयभीत ऋषि व देवता भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा करने की गुहार की। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने काफी सोच-विचार कर वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उन्होंने योगमाया द्वारा एक मृत शरीर वृंदा के घर के आंगन में फिंकवा दिया। माया का पर्दा होने से वृंदा को वह शव अपने पति का नजर आया।

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अपने पति को मृत देखकर, वह उस मृत शरीर पर गिरकर विलाप करने लगी। उसी समय एक साधु उसके पास आए और कहने लगे, ‘‘बेटी इतना विलाप मत करो। मैं इस मृत शरीर में जान डाल दूंगा। साधु ने मृत शरीर में जान डाल दी।’’ 

भावातिरेक में वृंदा ने उस मृत शरीर का आलिंगन कर लिया जिसके कारण उसका पतिव्रत धर्म नष्ट हो गया। बाद में वृंदा को भगवान का यह छल-कपट ज्ञात हुआ। उधर उसका पति जालंधर जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया।

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जब वृंदा को इस बात का पता चला तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, ‘‘जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री-वियोग सहने के लिए मृत्यु-लोक में जन्म लोगे।’’

यह कहकर वृंदा अपने पति के शव के साथ सती हो गई। भगवान विष्णु अब अपने छल पर बड़े लज्जित हुए। 

देवताओं और ऋषियों ने उन्हें कई प्रकार से समझाया तथा पार्वती ने वृंदा की चिता-भस्म में आंवला, मालती और तुलसी के पौधे लगाएं

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Tulsi Vivah Pauranik Katha: भगवान विष्णु ने तुलसी को ही वृंदा का रूप समझा मगर कालांतर में रामावतार के समय राम जी को सीता का वियोग सहना पड़ा। कहीं-कहीं प्रचलित है कि वृंदा ने यह शाप दिया था- तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर बनोगे। विष्णु बोले वृंदा तुम मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो। यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परमधाम को प्राप्त होगा। इसी कारण बिना तुलसी दल के शालीग्राम यानी विष्णु-शिला की पूजा अधूरी मानी जाती है। 

इस पुण्य की प्राप्ति के लिए आज भी तुलसी विवाह बड़ी धूमधाम से किया जाता है। तुलसी को कन्या मानकर व्रत करने वाला व्यक्ति यथाविधि से भगवान विष्णु को कन्यादान करके तुलसी विवाह सम्पन्न करता है। जिससे कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है।

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