नई रिसर्च में दावा: आंखों से पहचानें Diabetes और डिमेंशिया का खतरा, जानिए क्या कहते हैं रिसर्चर?

Edited By Updated: 13 Feb, 2025 10:03 AM

identify the risk of diabetes and dementia through eyes

ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण शोध में पाया है कि रेटिना (आंख के पिछले हिस्से की परत) की मोटाई में कमी टाइप 2 डायबिटीज, डिमेंशिया और मल्टीपल स्क्लेरोसिस (एमएस) जैसी बीमारियों का शुरुआती संकेत हो सकती है। यह शोध मेलबर्न के वॉल्टर और...

नेशनल डेस्क। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण शोध में पाया है कि रेटिना (आंख के पिछले हिस्से की परत) की मोटाई में कमी टाइप 2 डायबिटीज, डिमेंशिया और मल्टीपल स्क्लेरोसिस (एमएस) जैसी बीमारियों का शुरुआती संकेत हो सकती है। यह शोध मेलबर्न के वॉल्टर और एलाइजा हॉल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च (डब्ल्यूईएचआई) के वैज्ञानिकों ने किया है।

शोध का उद्देश्य और प्रक्रिया 

इस अंतरराष्ट्रीय शोध में 50,000 से अधिक आंखों का विश्लेषण किया गया ताकि यह समझा जा सके कि रेटिना में होने वाले बदलाव किस तरह से बीमारियों से जुड़े हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने रेटिना का बहुत बारीकी से नक्शा तैयार किया और पाया कि रेटिना की मोटाई में कमी टाइप 2 डायबिटीज, डिमेंशिया और एमएस जैसी बीमारियों से जुड़ी है।

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रेटिना क्या है और बीमारियों से इसका क्या संबंध है

रेटिना एक लाइट-सेंसिटिव परत होती है जो आंख के पीछे स्थित होती है और हमारे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का हिस्सा होती है। डिमेंशिया, डायबिटीज और एमएस जैसी बीमारियां इस तंत्र के कमजोर होने या गड़बड़ी से जुड़ी होती हैं। जब रेटिना की मोटाई कम होती है तो यह उसकी ऊत्तकों की धीरे-धीरे कमी को दर्शाता है जिसे लैटिस डिजेनेरेशन कहा जाता है।

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रिसर्च का महत्व 

डब्ल्यूईएचआई की प्रमुख शोधकर्ता विकी जैक्सन ने कहा कि इस शोध से यह पता चलता है कि रेटिना इमेजिंग का इस्तेमाल केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली को समझने और बीमारियों का पता लगाने में किया जा सकता है। उन्होंने कहा, "हमारे नक्शों से मिली जानकारी यह दर्शाती है कि रेटिना की मोटाई और कई सामान्य बीमारियों के बीच गहरा संबंध है।"

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद 

इस शोध में यूके और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी भाग लिया था। इस टीम ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से 50,000 नक्शे तैयार किए जिनमें हर रेटिना के 29,000 से अधिक बिंदुओं का विश्लेषण किया गया। इस अध्ययन के माध्यम से वैज्ञानिकों ने 294 ऐसे जीन की पहचान की जो रेटिना की मोटाई को प्रभावित करते हैं और बीमारियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि आंखों की नियमित जांच के जरिए रेटिना में होने वाले बदलावों का पता लगाया जा सकता है जिससे टाइप 2 डायबिटीज, डिमेंशिया और अन्य बीमारियों की पहचान और नियंत्रण में मदद मिल सकती है। इस शोध से यह उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में आंखों की जांच से इन बीमारियों का जल्द पता चल सकेगा।

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