कारगिल दिवस: जान हथेली पर रखकर अपने जवानों को जीवनदान दे गये मेजर जसरोटिया

Edited By Monika Jamwal,Updated: 26 Jul, 2018 03:01 PM

major ajay singh jasrotia a hero of kargil war

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले..वतर पर मरने वालों का यही आखिरी निशाां होगा..। पूरा देश कारगिल दिवस मना रहा है।

 जम्मू: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले..वतर पर मरने वालों का यही आखिरी निशाां होगा..। पूरा देश कारगिल दिवस मना रहा है। जांबाज जवानों की विजय गाथा का दिन। ऐसे में देश उन जवानों को भी नमन कर रहा है जिन्होंने अपने पराक्रम और शौर्य से दुश्मन को नाकों चने चाब दिये। इन्हीं में से एक हैं जम्मू के मेजर अजस सिंह जसरोटिया। ले कर्नल खजूर सिंह के पौत्र और बीएसएफ के डीआईजी अर्जुन सिंह के पुत्र। 

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मेजर जसरोटिया को उनके साथी रैम्बो के नाम से भी पुकारते थे। 13 अप्रैल 1971 को जन्मे मेजर अजय सिंह ने परिवार की परम्परा का पालन करते हुए आर्मी को चुना। ऑपरेशन कारगिल में उन्हें प्वांइट 5140 को वापिस हासिल करने का जिम्मा मिला। टोलोलिंग रिज लाइन पर यह सबसे बड़ी पोजिशन थी जिसपर पाकिस्तानी आर्मी ने कब्जा कर रखा था। तीन अलग-अलग दिशाओं से तीन बटालियनों को भेज गया जिसमें गडवाल राइफल, जम्मू कश्मीर राइफल और नागा रजिमेंट थीं। जम्मू कश्मीर राइफल की कमान मेजर जसरोटिया के पास थी।

जवानों की जान बचाते हुए हो गये शहीद
मेजर अजय सिंह 15 जून 1999 को 56 माउंटेन ब्रिगेड का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़ रहे थे कि तभी दुश्मन ने भारी गोलीबारी शुरू कर दी। पहला शैल फटने से 6 जवान घायल हो गये। जवानों ने शरण लेने के लिए इधर-उधर भागना शुरू कर दिया। मेजर जसरोटिया ने स्थिति को संभालते हुए सभी को प्रशासनिक बेस में कवर लेने का आर्डर दिया। गोलीबारी के बीच उन्होंने जवानों को रेस्कयू करने का काम जारी रखा। इसी दौरान मेजर गंभीर रूप से घायल हो गये। उनकी स्थिति खराब होती गई पर उन्होंने युद्ध भूमि को छोडऩे से इन्कार कर दिया। शहादत को गले लगाने से पहले वो छ जवानों को जीवनदान दे गये। उन्हें उनकी सेवाओं के लिए सेना मेडल दिया गया।
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