ईरान में फंस गए 100 से ज्यादा भारतीय, परिजनों की बढ़ी बेचैनी

Edited By Parveen Kumar,Updated: 18 Jun, 2025 06:46 PM

more than 100 indians stuck in iran

कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर जिले में बसा अलीपुर गांव जिसे 'सिटी ऑफ हजरत अली' भी कहा जाता है, इन दिनों चिंता और परेशानी में है। बेंगलुरु से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव के 60 से ज्यादा युवा और 50 से अधिक श्रद्धालु इस समय ईरान में फंसे हुए हैं।...

नेशनल डेस्क: कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर जिले में बसा अलीपुर गांव जिसे 'सिटी ऑफ हजरत अली' भी कहा जाता है, इन दिनों चिंता और परेशानी में है। बेंगलुरु से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव के 60 से ज्यादा युवा और 50 से अधिक श्रद्धालु इस समय ईरान में फंसे हुए हैं। इनमें से कई छात्र मेडिकल (MBBS) और इस्लामिक स्टडीज की पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि बाकी लोग जियारत (धार्मिक यात्रा) पर गए थे।

शिक्षा और आस्था का संगम

अलीपुर की आबादी करीब 25,000 है और यहां लगभग 4,000 परिवार रहते हैं। इनमें से 90% से ज्यादा लोग शिया मुस्लिम हैं। यहां के लोग शिक्षा और धर्म, दोनों में आगे हैं। गांव के छात्र भारत ही नहीं, बल्कि ईरान, इराक और दूसरे मुस्लिम देशों में भी पढ़ाई कर रहे हैं। फिलहाल 15 छात्र ईरान में MBBS कर रहे हैं और 50 से ज्यादा छात्र धार्मिक संस्थानों में पढ़ाई कर रहे हैं।

ईरान में हालात और गांव की चिंता

ईरान में चल रही लड़ाई और तनाव की वजह से अलीपुर के लोग अपने बच्चों और रिश्तेदारों की सुरक्षा को लेकर बहुत परेशान हैं। हालांकि अभी तक इंटरनेट और फोन की मदद से संपर्क बना हुआ है, जिससे थोड़ी राहत है।

मफ़्फरहा ज़ैनब, जो ईरान में MBBS की छात्रा हैं, उनके पिता रौशन अली ने बताया कि वह अपनी बेटी से बात कर पा रहे हैं और वह सुरक्षित है। फिर भी वे बहुत चिंतित हैं और चाहते हैं कि उनकी बेटी जल्दी से घर लौट आए। जैनब के भाई हमदान रज़ा ने बताया कि भारतीय दूतावास मदद कर रहा है और स्थानीय पुलिस भी लगातार जानकारी ले रही है।

तीर्थयात्रियों की सुरक्षित वापसी की कोशिश

हर महीने अलीपुर से कई श्रद्धालु ईरान और इराक के धार्मिक स्थलों की यात्रा पर जाते हैं। इस बार करीब 50 लोग ईरान में फंसे हुए हैं। अलीपुर की शिया संस्था "अंजुमन-ए-जाफरया" के अध्यक्ष मीर अली अब्बास ने बताया कि भारतीय दूतावास की मदद से कुछ लोगों को सुरक्षित शहरों और आर्मीनिया की सीमा के पास भेजा गया है, ताकि उनकी जल्द वापसी हो सके।

धार्मिक विरासत और आधुनिकता का मेल

अलीपुर की पहचान सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल की भी है। माना जाता है कि 18वीं सदी में यह गांव शिया मुस्लिमों ने बसाया था। यहां की मस्जिदें, इमामबाड़े और मदरसे ईरानी शैली में बने हैं। मुहर्रम के समय यह गांव श्रद्धालुओं से भर जाता है, जो कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से यहां आते हैं।

शिक्षा और समाजसेवा में आगे

यहां के लोग शिक्षा को इबादत मानते हैं। अलीपुर में कई ऐसे स्कूल हैं जहां हर धर्म और जाति के बच्चों को पढ़ाया जाता है और उन्हें मुफ्त भोजन भी मिलता है। अब यह गांव एक आधुनिक टाउनशिप का रूप ले रहा है, जहां परंपरा और तरक्की साथ-साथ चल रही हैं।

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