Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Nov, 2024 12:56 PM
Hanuman ji ki kahani: मकरी अप्सरा का उद्धार और कालनेमि का वध करके हनुमान जी अति शीघ्र ही ऋषभ और कैलाश पर्वत के बीच स्थित प्रसिद्ध द्रोणाचल के शिखर पर जा पहुंचे। उस पर्वत पर अनेक प्रकार की औषधियां जगमगा रही थीं, जिनकी चमक से उस पर्वत की अनुपम छटा...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Hanuman ji ki kahani: मकरी अप्सरा का उद्धार और कालनेमि का वध करके हनुमान जी अति शीघ्र ही ऋषभ और कैलाश पर्वत के बीच स्थित प्रसिद्ध द्रोणाचल के शिखर पर जा पहुंचे। उस पर्वत पर अनेक प्रकार की औषधियां जगमगा रही थीं, जिनकी चमक से उस पर्वत की अनुपम छटा बरबस ही मन को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। उस पर बड़े-बड़े सर्प, भालू, हाथी, सिंह आदि सुखपूर्वक निवास करते थे तथा वहां यक्ष, किन्नर, गंधर्व तथा बहुत से देवताओं का वास था। महर्षि, मुनि, तपस्वी और सिद्धगण उसकी कन्दराओं में दिन-रात ईश्वर की आराधना-उपासना में लगे रहते थे।
उस विशाल पर्वत पर पहुंच कर हनुमान जी ने वैद्य सुषेण द्वारा बताई गई संजीवनी औषधि प्राप्त करने के लिए चारों ओर दृष्टि दौड़ाई परन्तु संजीवनी नामक औषधि कौन-सी है, यह समझ पाना उनके लिए बहुत ही कठिन हो रहा था। बहुत समय तक औषधि की तलाश में हनुमान जी उस पर्वत पर इधर-उधर भटकते रहे परन्तु ऐसा लगता था जैसे उस उत्तम पर्वत पर रहने वाली उस दिव्य औषधि ने अपने आप को अदृश्य कर लिया हो।
इधर रात्रि तेजी से बीत रही थी। सुबह होने के पहले ही उन्हें औषधि लेकर भगवान श्री रामचंद्र जी के पास लंका पहुंच जाना था। यदि वह ऐसा नहीं कर पाते तो लक्ष्मण जी के प्राण किसी प्रकार बचाए नहीं जा सकते। भगवान श्री रामचंद्र जी समेत सबकी आशाएं इस समय उन पर ही टिकी हुई थींं। ऐसी स्थिति में यदि उन्हें थोड़ा भी विलम्ब होता तो महान अनर्थ की आशंका आदि बातों का ध्यान करके महावीर हनुमान जी बहुत ही व्याकुल हो उठे। उन्होंने सोचा कि औषधि खोजने में अब मुझे अधिक समय नष्ट नहीं करना चाहिए। मुझे इस सम्पूर्ण द्रोणाचल को ही यहां से उखाड़ लेना चाहिए। इस पूरे पर्वत को ही मैं वैद्य सुषेण के पास पहुंचाए देता हूं। वह इसमें से संजीवनी की तलाश कर लेंगे।
यह सोचकर उन्होंने तुरंत ही खेल-खेल में उस पूरे पर्वत को उखाड़ कर अपने दाहिने हाथ की हथेली पर रख लिया। वेग से उखाड़े जाने के कारण वह पर्वत कांप उठा तथा उसकी बहुत-सी चोटियां इधर-उधर गिरकर बिखर गईं। हनुमान जी वायु वेग से लंका की ओर उड़ चले।
महावीर हनुमान के इस अद्भुत कार्य को देखकर देव, दानव, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व सभी को बड़ा विस्मय हुआ। सभी उनके इस कृत्य की भूरि-भूरि सराहना करने लगे। रात्रि के उस घने अंधकार में हाथ में जगमगाता हुआ द्रोणाचल तथा अति तीव्र गति से उड़ते हुए हनुमान जी को देखकर ऐसा लगता था-जैसे आकाश में प्रकाश की एक रेखा खिंचती चली जा रही है।
पर्वत रूपधारी महावीर हनुमान जी का यह स्वरूप सभी प्रकार से हमारा मंगल करने वाला है। इस रूप की उपासना और ध्यान से मनुष्य के बड़े से बड़े कष्ट और संकट अनायास ही दूर हो जाते हैं। वह सभी आपदाओं पर विजय प्राप्त कर लेता है। हमें रामदूत पवनपुत्र हनुमान जी के इस स्वरूप का निरंतर ध्यान करना चाहिए।