इस मुस्लिम देश में अनोखी परंपरा: मरने के बाद बच्चों को पेड़ में किया जाता है दफन!

Edited By Updated: 23 Dec, 2025 10:44 PM

in this muslim country there s a unique tradition children are buried in trees

दुनिया के अलग-अलग देशों में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार की परंपराएं अलग होती हैं। कहीं शव को जलाया जाता है, कहीं दफनाया जाता है, तो कहीं समुद्र में विसर्जित किया जाता है। लेकिन इंडोनेशिया में एक ऐसी परंपरा है, जो पहली बार सुनने पर लोगों को चौंका...

इंटरनेशनल डेस्कः दुनिया के अलग-अलग देशों में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार की परंपराएं अलग होती हैं। कहीं शव को जलाया जाता है, कहीं दफनाया जाता है, तो कहीं समुद्र में विसर्जित किया जाता है। लेकिन इंडोनेशिया में एक ऐसी परंपरा है, जो पहली बार सुनने पर लोगों को चौंका देती है। यहां कुछ समुदायों में मृत बच्चों को जमीन में नहीं, बल्कि पेड़ के अंदर दफनाया जाता है।

इंडोनेशिया: मुस्लिम बहुल देश, लेकिन विविध संस्कृतियां

इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश है, लेकिन यहां सैकड़ों जनजातियां और स्थानीय संस्कृतियां भी रहती हैं। इन्हीं में से एक है तोराजा जनजाति, जो दक्षिण सुलावेसी प्रांत में रहती है। यह समुदाय अपनी बेहद अलग और खास अंतिम संस्कार परंपराओं के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है।
तोराजा लोगों की मान्यताएं इस्लाम या किसी एक धर्म से नहीं, बल्कि प्रकृति, पूर्वजों और आत्मा से जुड़े पुराने विश्वासों पर आधारित हैं।

बच्चों को पेड़ में दफनाने की अनोखी रस्म

तोराजा समुदाय में यदि किसी छोटे बच्चे की मृत्यु दांत निकलने से पहले हो जाती है, तो उसे जमीन में दफन नहीं किया जाता। इस प्रक्रिया में एक बड़े और खास पेड़ के तने में छेद किया जाता है। बच्चे के शरीर को कपड़े में लपेटकर उस छेद में रखा जाता है। बाद में उस छेद को ताड़ के पेड़ से बने प्राकृतिक फाइबर से बंद कर दिया जाता है। कुछ समय बाद पेड़ धीरे-धीरे बढ़ता है और वह छेद अपने आप भर जाता है, मानो बच्चे को प्रकृति ने अपनी गोद में समा लिया हो।

इसके पीछे क्या है विश्वास?

स्थानीय लोगों का मानना है कि छोटे बच्चों की आत्मा बहुत पवित्र और निष्कलंक होती है। उनके अनुसार पेड़ के अंदर दफन करने से आत्मा सीधे प्रकृति से जुड़ जाती है। हवा, मिट्टी और पेड़ बच्चे की आत्मा को अपने साथ ले जाते हैं। यह मृत्यु नहीं, बल्कि जीवन के एक नए रूप की शुरुआत मानी जाती है। इसी वजह से इसे दुखद घटना नहीं, बल्कि एक शांत और पवित्र विदाई माना जाता है।

बाहर वालों को डरावनी, अंदर वालों को पवित्र परंपरा

जो लोग बाहर से आते हैं, उन्हें पेड़ों में बने ये गड्ढे और वहां का माहौल थोड़ा डरावना लग सकता है। लेकिन तोराजा समुदाय के लिए यह सम्मान की रस्म है, आत्मा की शांति का रास्ता है और प्रकृति के साथ जुड़ाव का प्रतीक है। वे इसे कभी भयानक नहीं मानते, बल्कि पूरी श्रद्धा और भावनाओं के साथ निभाते हैं।

वयस्कों के लिए अलग अंतिम संस्कार

तोराजा जनजाति में वयस्कों और बुजुर्गों के लिए अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बिल्कुल अलग होती है। यहां एक खास रस्म होती है, जिसे मृतकों और जीवितों के रिश्ते से जोड़ा जाता है। पहले पुराने पूर्वजों के शवों को कब्र से बाहर निकाला जाता है। उन्हें साफ किया जाता है और नए कपड़े पहनाए जाते हैं। फिर पूरे गांव में घुमाया जाता है  और इसके बाद ही नए मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाता है। इस परंपरा का मकसद यह दिखाना है कि मृत्यु के बाद भी रिश्ते खत्म नहीं होते।

आधुनिक दौर में पर्यटन का केंद्र

आज के समय में यह परंपरा दुनिया भर के लोगों के लिए जिज्ञासा और रिसर्च का विषय बन चुकी है। हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक और डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले लोग तोराजा क्षेत्र आते हैं। हालांकि स्थानीय प्रशासन और समुदाय इस बात का खास ध्यान रखते हैं कि परंपराओं का सम्मान बना रहे इन्हें तमाशा या सनसनी न बनाया जाए।

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