Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 May, 2025 06:29 AM
Ganga Saptami 2025: वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन देवी गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए गंगा सप्तमी पर गंगा जन्मोत्सव मनाया जाता है। जब कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Ganga Saptami 2025: वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन देवी गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए गंगा सप्तमी पर गंगा जन्मोत्सव मनाया जाता है। जब कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए सगर के वंशज भागीरथ ने घोर तपस्या की। वे अपनी कठिन तपस्या से गंगा को प्रसन्न कर धरती पर ले आए। गंगा के स्पर्श से ही राजा सगर के 60 हज़ार पुत्रों का उद्धार हो सका। शास्त्रों ने गंगा को मोक्षदायिनी कहा है। पुराणों में गंगा को मंदाकिनी रूप में स्वर्ग, गंगा के रूप में पृथ्वी व भोगवती रूप में पाताल में प्रवाहित होते हुए वर्णित किया गया है।
प्राचीन धर्मग्रंथों के अनुसार हरिद्वार स्वर्ग के द्वार के समान है। वहां जो एकाग्र होकर कोटि तीर्थ में स्नान करता है, उसे पुंडरीक यज्ञ का फल मिलता है। वह अपने कुल का उद्धार कर देता है। वहां एक रात निवास करने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। सप्तगंगा, त्रिगंगा और शक्रावर्त में विधिपूर्वक देव ऋषि-पितृ तर्पण करने वाला पुण्य लोक में प्रतिष्ठित होता है। इसके बाद कनखल में स्नान करके तीन रात उपवास करें। ऐसा करने वाला अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है और स्वर्गगामी होता है। इस नगर के कई नाम हैं-हरद्वार, हरिद्वार, गंगाद्वार, कुशावर्त। मायापुरी, हरिद्वार, कनखल, ज्वालापुर और भीमगोड़ा-इन पांचों पुरियों को मिलाकर हरिद्वार कहा जाता है। हरिद्वार प्रसिद्ध रेलवे स्टेशन है। कोलकाता, पंजाब तथा दिल्ली से सीधी ट्रेनें यहां आती हैं। सड़क मार्ग से भी दिल्ली, देहरादून आदि से यह नगर जुड़ा हुआ है। गंगाद्वार (हरि की पैड़ी), कुशावर्त, बिल्वकेश्वर, नील पर्वत तथा कनखल-ये पांच प्रधान तीर्थ हरिद्वार में हैं। इनमें स्नान तथा दर्शन से पुनर्जन्म नहीं होता।

Brahmakund or Har ki Pauri ब्रह्मकुंड या हरि की पैड़ी
राजा भगीरथ के मृत्युलोक में गंगा जी को लाने पर राजा श्वेत ने इसी स्थान पर ब्रह्मा जी की बड़ी आराधना की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने वर मांगने को कहा। राजा ने कहा कि यह स्थान आपके नाम से प्रसिद्ध हो, यहां पर आप भगवान विष्णु तथा महेश के साथ निवास करें और यहां सभी तीर्थों का वास हो।
ब्रह्मा जी ने कहा, ‘‘ऐसा ही होगा। आज से यह कुंड मेरे नाम से प्रख्यात होगा और इसमें स्नान करने वाले परमपद के अधिकारी होंगे।’’ तभी से इसका नाम ब्रह्मकुंड हुआ।
ऐसी मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि ने यहीं तपस्या करके अमरपद पाया था। भर्तृहरि की स्मृति में राजा विक्रमादित्य ने पहले पहल यह कुंड तथा पैड़ियां (सीढ़ियां) बनवाई थीं। इसका नाम हरि की पैड़ी इसी कारण पड़ गया। खास हरि की पैड़ी के पास एक बड़ा सा कुंड बनवा दिया गया है। इस कुंड में एक ओर से गंगा की धारा आती है और दूसरी ओर से निकल जाती है। कुंड में कहीं भी जल कमर भर से ज्यादा गहरा नहीं है। इस कुंड में ही हरि अर्थात विष्णु चरणपादुका, मनसा देवी, साक्षीश्वर एवं गंगाधर महादेव के मंदिर तथा राजा मान सिंह की छत्री है। हरिद्वार में सर्वप्रधान यही तीर्थ है।

Kushavart Ghat कुशावर्त घाट
यहां दस हजार वर्ष तक एक पैर पर खड़े होकर दत्तात्रेय जी ने तप किया था। उनके कुश, चीर, कमंडल और दंड घाट पर रखे थे। जिस समय वह तपस्या में लीन थे, गंगा की एक प्रबल धार इन चीजों को बहा ले चली। उनके तप के प्रभाव से वे चीजें बहीं नहीं बल्कि गंगा की वह धार आवर्त (भंवर) की भांति वहीं चक्कर खाने लगी और उनकी सब चीजें भी उसी आवर्त में चक्कर खाती रहीं। जब उनकी समाधि खुली और उन्होंने देखा कि उनकी सब वस्तुएं जल में घूम रही हैं और भीग गई हैं तब वह गंगा को भस्म करने के लिए उद्यत हुए। उस समय ब्रह्मा आदि सभी देवता आकर उनकी स्तुति करने लगे। तब ऋषि ने प्रसन्न होकर कहा, ‘‘आप लोग यहीं निवास करें। गंगा ने मेरे कुश आदि को यहां आवर्ताकार घुमाया है, इसलिए इसका नाम कुशावर्त होगा। यहां पितरों को पिंडदान देने से उनका पुनर्जन्म नहीं होगा।’’

Shravannath Ji's Temple श्रवणनाथ जी का मंदिर
कुशावर्त के दक्षिण में श्रवणनाथ जी का मंदिर है। श्रवणनाथ जी एक पहुंचे हुए महात्मा थे। उन्हीं का यह स्थान है तथा यहां पर पंचमुखी महादेव की कसौटी पत्थर की बनी मूर्ति है।

Vishnu Ghat विष्णु घाट
श्रवणनाथ जी के मंदिर से दक्षिण विष्णु घाट है। यहां भगवान विष्णु ने तप किया था।

Maya devi माया देवी
विष्णु घाट से थोड़ा दक्षिण भैरव अखाड़े के पास यह घाट है। यहां भैरव जी, अष्टभुजी भगवान शिव तथा त्रिमस्तकी देवी दुर्गा मूर्ति है जिसके एक हाथ में त्रिशूल तथा एक में नरमुंड है। माया देवी का मंदिर पुराना है।

Narayani Sheela नारायणी शिला
यह गणेश घाट से थोड़ी दूर ज्वालापुर की सड़क के किनारे है। यहां नारायण बलि तथा पिंडदान करने से प्रेतयोनि छूट जाती है।

Neel Dhara नीलधारा
नहर के उस पार नील पर्वत के नीचे वाली गंगा की धारा को नीलधारा कहा जाता है। दरअसल नीलधारा ही गंगा की प्रधान धारा है। नील पर्वत के नीचे नीलधारा में स्नान करके पर्वत पर नीलेश्वर महादेव के दर्शन करने का बड़ा माहात्म्य है। ऐसी मान्यता है कि शिवजी के नील नामक एक गण ने यहां पर शंकर जी की प्रसन्नता के लिए घोर तपस्या की थी, इसलिए इस पर्वत का नाम नील पर्वत, नीचे की धारा का नाम नीलधारा तथा उसने जिस शिवलिंग की स्थापना की, उसका नाम नीलेश्वर पड़ गया।

Chandi Devi चंडी देवी
नील पर्वत के शिखर पर चंडी देवी का मंदिर है। चंडी देवी की चढ़ाई करीब दो मील की है। चंडी देवी के मंदिर के लिए चढ़ाई के दो मार्ग हैं। पहला गौरीशंकर महादेव के मंदिर से होकर तथा दूसरा कामराज की काली के मंदिर के पास से। ऐसी मान्यता है कि देवी के दर्शनों के लिए रात में सिंह आता है और इसीलिए वहां रात में पंडे-पुजारी कोई भी नहीं रहते।
Anjani अंजनी
हनुमान जी की मां अंजनी देवी का मंदिर चंडी देवी के मंदिर के पास ही पहाड़ के दूसरी ओर है।
Gaurishankar गौरीशंकर
अंजनी देवी के मंदिर के नीचे गौरीशंकर महादेव का मंदिर है, जो बिल्व के वृक्षों की श्रेणी के नाम से प्रसिद्ध है।
Bilveshwar बिल्वकेश्वर
स्टेशन से हरि के पैड़ी के रास्ते में जो ललतारो नदी पर पक्का पुल पड़ता है, वहीं से बिल्वकेश्वर महादेव को रास्ता जाता है। रेलवे लाइन के उस पार बिल्व नामक पर्वत है, उसी पर बिल्वकेश्वर महादेव हैं। बिल्वकेश्वर महादेव की दो मूर्तियां हैं-एक मंदिर के अंदर और दूसरी मंदिर के बाहर। पहले यहां पर बेल का बहुत बड़ा वृक्ष था, उसी के नीचे बिल्वकेश्वर महादेव की मूर्ति थी। इसी पर्वत पर गौरीकुंड है। बिल्वकेश्वर महादेव के बाईं ओर गुफा में देवी की मूर्ति है। दोनों मंदिरों के बीच एक नदी है जिसका नाम शिवधारा है।
Kankhal कनखल
कनखल में स्नान का बड़ा माहात्म्य है। नीलधारा तथा नहर वाली गंगा की धारा दोनों यहां आकर मिल जाती हैं। सभी तीर्थों में भटकने के बाद यहां स्नान करने से एक खल की मुक्ति हो गई थी। इसलिए मुनियों ने इसका नामकरण ‘कनखल’ कर दिया। हरि की पैड़ी से कनखल तीन मील दूर है।
Daksheshwar Mahadev दक्षेश्वर महादेव
मुख्य बाजार से आधा मील आगे जाने पर दक्ष प्रजापति का मंदिर मिलता है।
Sati Kund सतीकुंड
दक्षेश्वर से आधा मील पश्चिम में सतीकुंड है। मान्यता है कि यहीं सती ने शरीर त्याग किया था और दक्ष प्रजापति ने भी यहीं तप किया था। इस कुंड में स्नान का माहात्म्य है।
Bhimgoda भीमगोड़ा
हरि की पैड़ी से पहाड़ के नीचे होकर जो सड़क ऋषिकेश को जाती है, उसी पर यह तीर्थ है। पहाड़ी के नीचे एक मंदिर है। उसके आगे एक चबूतरा तथा कुंड है। कुंड में पहाड़ी झरने का पानी आता है। ऐसी मान्यता है कि भीमसेन ने यहां तपस्या की थी और उनके गोड़ा (पैर के घुटने) टेकने से एक कुंड बन गया था। इसी कारण इसका यह नाम भी पड़ गया। यहां ब्रह्मा जी का मंदिर है।
Chaubis avtar चौबीस अवतार
भीमगोड़ा के रास्ते में गंगा के किनारे एक मंदिर है, जिसे कांगड़ा के राजा का बनवाया हुआ कहा जाता है। इसमें चौबीस अवतार की मूर्तियां दर्शन करने योग्य हैं।
Saptdhara सप्तधारा
भीमगोड़ा से एक मील आगे सप्तस्रोत है। यह तपोभूमि है। यहां सप्तऋषियों ने तप किया था और उन्हीं के लिए गंगा को सात धाराओं में होकर बहना पड़ा था।
Satyanarayana Temple सत्यनारायण मंदिर
सप्तधारा से तीन मील आगे ऋषिकेश के रास्ते में सत्यनारायण का मंदिर है। यहां भी दर्शन तथा कुंड में स्नान का माहात्म्य है।
Rishikesh ऋषिकेश
हरिद्वार से ऋषिकेश रेल आती है और मोटर-बसें भी जाती हैं। यहां से श्रद्धालु यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ जाते हैं। ऋषिकेश में श्रद्धालु त्रिवेणी घाट पर स्नान करते हैं। यहां का मुख्य मंदिर भरत मंदिर है। यह प्राचीन विशाल मंदिर है। इसके अलावा राम मंदिर, वाराह मंदिर, चंद्रेश्वर मंदिर आदि कई मंदिर हैं। ऋषिकेश बाजार से आगे डेढ़ मील पर मुनि की रेती है। उसके आगे जाकर नौका से गंगा पार करने पर स्वर्गाश्रम आता है। स्वर्गाश्रम बड़ा रमणीय स्थान है। यहां गीताभवन का विशाल स्थान तथा यहां परमार्थ निकेतन है, जहां बहुत से साधु संत रहा करते हैं तथा कीर्तन सत्संग चलता है। मुनि की रेती से डेढ़ मील पर लक्ष्मण झूला है। यहां लक्ष्मण जी का मंदिर तथा अन्य कई मंदिर हैं। ऋषिकेश का विस्तार लक्ष्मण झूला तक है। स्वर्गाश्रम में तथा इस किनारे भी साधु-संन्यासियों के आश्रम हैं। यहां स्नान-दान-उपवास का बड़ा महत्व है।