Edited By Sarita Thapa,Updated: 30 Apr, 2025 02:41 PM
किलेंथिस नामक बालक ग्रीस की एक पाठशाला में पढ़ता था। वह बहुत ही गरीब था। उसके शरीर पर पूरे कपड़े भी नहीं थे पर पाठशाला में प्रतिदिन जो फीस देनी पड़ती थी।
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Inspirational Context: किलेंथिस नामक बालक ग्रीस की एक पाठशाला में पढ़ता था। वह बहुत ही गरीब था। उसके शरीर पर पूरे कपड़े भी नहीं थे पर पाठशाला में प्रतिदिन जो फीस देनी पड़ती थी, उसे वह नियम से देता था। पढ़ने में वह इतना तेज था कि दूसरे सब विद्यार्थी उससे ईर्ष्या करते थे।
कुछ लोगों को संदेह था कि किलेंथिस फीस के जो पैसे देता है वह जरूर कहीं से चुराकर लाता होगा। आखिरकार उन्होंने उसे चोर बता कर पकड़वा दिया। मामला अदालत में गया। किलेंथिस ने निर्भयता के साथ जज से कहा कि मैं बिल्कुल निर्दोष हूं। अपने इस बयान के समर्थन में दो गवाह पेश करना चाहता हूं। गवाह बुलाए गए। पहला गवाह था एक माली।
उसने कहा, “यह बालक प्रतिदिन मेरे बगीचे में आकर कुएं से पानी खींचता है और इसके लिए इसे कुछ पैसे मजदूरी के दिए जाते हैं।”
दूसरी गवाही में एक बुढ़िया आई। उसने कहा, “मैं अकेली हूं। यह बालक प्रतिदिन मेरे घर पर गेहूं पीस कर जाता है और बदले में अपनी मजदूरी के पैसे ले जाता है।”
इस प्रकार शारीरिक परिश्रम करके किलेंथिस कुछ पैसे प्रतिदिन कमाता और उसी से अपना निर्वाह करता तथा पाठशाला की फीस भी भरता। किलेंथिस की इस नेक कमाई की बात सुनकर जज बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे इतनी सहायता देने की पेशकश की जिससे उसकी पढ़ाई पूरी हो सके। परन्तु उसने सहायता लेना स्वीकार नहीं किया और कहा, “मैं परिश्रम करके अपने बलबूते पर पढ़ना चाहता हूं। मेरे माता-पिता ने मुझे आत्मनिर्भर बनना सिखाया है।” यह सुनकर सब दंग रह गए।