'ईरान वालो, झुकना मत... अमेरिका ने मेरे पिता को भी धोखे से मारा था!' - गद्दाफी की बेटी का वायरल संदेश

Edited By Updated: 24 Jun, 2025 11:16 AM

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मध्य-पूर्व के सोशल मीडिया पर इन दिनों एक तीखा और भावनात्मक संदेश तेज़ी से वायरल हो रहा है जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। यह संदेश किसी और ने नहीं बल्कि लीबिया के दिवंगत शासक मुअम्मर गद्दाफी की बेटी आयशा गद्दाफी ने साझा किया है। जब ईरान...

इंटरनेशनल डेस्क। मध्य-पूर्व के सोशल मीडिया पर इन दिनों एक तीखा और भावनात्मक संदेश तेज़ी से वायरल हो रहा है जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। यह संदेश किसी और ने नहीं बल्कि लीबिया के दिवंगत शासक मुअम्मर गद्दाफी की बेटी आयशा गद्दाफी ने साझा किया है। जब ईरान पर इज़राइल और अमेरिका के ताबड़तोड़ हमले हो रहे हैं तब आयशा ने एक खुले पत्र के ज़रिए ईरानी जनता से न सिर्फ़ एकजुट रहने बल्कि पश्चिमी देशों के झूठे वादों से सतर्क रहने की अपील की है। इस संदेश को अलियु अब्दुल अली बामैयी नामक शख्स ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है जो अब वायरल हो रहा है।

"हमें भी पश्चिम ने धोखा दिया था" - आयशा का खुला खत

आयशा ने अपने संदेश में साफ़ शब्दों में लिखा है:

"मैं उस स्त्री की आवाज़ हूँ जिसने अपने वतन की मौत देखी — वह भी न खुले दुश्मनों के हाथों बल्कि पश्चिम की मुस्कराती चालों और झूठे वादों के जरिये।"

आयशा ने दावा किया है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने उनके पिता से यह वादा किया था कि यदि वह अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम छोड़ देंगे तो दुनिया के दरवाजे उनके लिए खुल जाएंगे लेकिन नतीजा इसके ठीक उलट हुआ। आयशा ने लिखा, "हमने देखा कैसे नाटो की बमबारी ने लीबिया को खून और राख में बदल दिया।" यह बयान पश्चिम पर भरोसे के नाम पर धोखे का सीधा आरोप है।

 

ईरानी जनता से भावनात्मक अपील: "संघर्ष ही सम्मान है"

आयशा ने ईरानी जनता को उन देशों की मिसालें दीं जो संघर्ष करते रहे जैसे क्यूबा, वेनेजुएला, उत्तर कोरिया और फिलिस्तीन और उन देशों का हश्र भी बताया जो झुक गए। उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से कहा:

"भीड़िये से बातचीत बकरी को नहीं बचाती- यह केवल उसके अगले शिकार का समय तय करती है।"

उनका यह बयान ईरानी जनता के आत्मबल को बढ़ाने की एक कोशिश माना जा रहा है विशेषकर तब जब देश लगातार सैन्य और आर्थिक हमलों का सामना कर रहा है। आयशा का यह खत केवल राजनीतिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत दर्द से भी भरा है क्योंकि वह अपने परिवार, विशेषकर पिता मुअम्मर गद्दाफी को पश्चिमी दखल और धोखे का शिकार मानती हैं।

 

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वायरल हो रहे खत का मजमून: "सब्र न खोएं"

आयशा के इस पूरे खत का मजमून कुछ इस तरह है:

"हे महान और संघर्षशील ईरानी जनता! मैं आपसे उन दुखों, विनाशों और धोखों के बाद बात कर रही हूँ जो मैंने अपने जीवन में देखे हैं। मैं उस स्त्री की आवाज़ हूँ जिसने अपने वतन की मौत को अपनी आंखों से देखा और यह मौत किसी खुले दुश्मन के हाथों नहीं बल्कि पश्चिम की धोखेबाज़ मुस्कानें और झूठे वादों के कारण हुई। मैं आपको चेतावनी देती हूँ! पश्चिमी साम्राज्यवाद की मीठी बातें और सुंदर नारे झूठ का जाल हैं। यही वे लोग हैं जिन्होंने मेरे पिता (मुअम्मर क़ज़ाफ़ी) से कहा था: 'अगर आप अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों को छोड़ देंगे तो दुनिया आपके लिए खुल जाएगी।' मेरे पिता ने सच्चे मन से बातचीत का रास्ता अपनाया लेकिन हमने देखा कि कैसे नाटो की बमबारी ने लीबिया को खून और राख में बदल दिया और हमारे लोगों को गुलामी, गरीबी और बेघरी की ओर धकेल दिया। हे ईरानी भाइयो और बहनो! आपका प्रतिरोध, आपका स्वाभिमान और आर्थिक व मीडिया हमलों के सामने आपकी स्थिरता ये आपकी कौम की जिंदगी और इज़्ज़त की निशानी हैं। समझौता केवल तबाही, विभाजन और बर्बादी लाता है। भेड़िए से बातचीत बकरी को नहीं बचाती वो तो बस उसके अगले शिकार का समय तय करती है! हमने देखा है कि जो कौमें डटी रहीं  क्यूबा, वेनेजुएला, उत्तर कोरिया और फिलिस्तीन वे आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं और इतिहास उन्हें सम्मान से याद करता है। और हमने यह भी देखा है कि जो झुक गए आत्मसमर्पण कर दिए वे अपनी ही राख में खो गए। प्यार और सहानुभूति के साथ आयशा गद्दाफी लीबिया।"

 

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क्यों वायरल हो रही है यह पोस्ट?

ईरान और इज़राइल-अमेरिका के बीच चल रहे युद्ध के बीच यह पोस्ट एक "अंदर से आवाज़" की तरह सामने आई है जो पश्चिमी देशों की नीतियों और वादों पर अविश्वास को उजागर करती है। आयशा की इस पोस्ट में उनका निजी दुख और अंतरराष्ट्रीय राजनीति की आलोचना गहराई से झलकती है। यह संदेश युवाओं, राजनीतिक विश्लेषकों और प्रतिरोध समर्थक सोशल मीडिया नेटवर्कों में भावनात्मक हथियार की तरह साझा किया जा रहा है।

इस पोस्ट के मुख्य संदेश स्पष्ट हैं:

  • अमेरिका और पश्चिम पर भरोसा मत करो।
  • मुझे और मेरे देश को भी मीठे वादों से धोखा दिया गया था।
  • ईरान को अपने आत्मसम्मान, प्रतिरोध और एकता को बनाए रखना चाहिए।

 

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ईरानी जनता के लिए संदेश: सब्र और प्रतिरोध

आयशा का यह बयान एक तरह से चेतावनी है: "पश्चिम के साथ समझौता करके हमने क्या पाया? तबाही। ईरानियों, आप भी सब्र करें, पीछे मत हटें क्योंकि समझौता केवल अगला हमला तय करता है।" फारसी टेलीग्राम चैनल्स और ट्विटर अकाउंट्स पर यह खत वायरल हो रहा है। कई ईरानी यूज़र्स इसे "सच्चाई की गूंज" बता रहे हैं कुछ इसे राजनीतिक सहानुभूति का उदाहरण मानते हैं जबकि कुछ लोग इसे प्रोपेगेंडा भी कह रहे हैं।

"ईरान वालो, झुकना मत…" यह सिर्फ एक भावुक बयान नहीं बल्कि इतिहास से निकली एक कड़वी सीख है। आयशा गद्दाफी की आवाज़ आज उस समूचे क्षेत्र के लिए एक चेतावनी बनकर गूंज रही है: "जिसने हथियार डाले, वो खत्म हो गया जिसने डटे रहे, वही जिंदा हैं।" ईरान की जनता के लिए यह एक भावनात्मक और चेतावनी भरा संदेश है कि सब्र, एकजुटता और आत्मगौरव ही इस समय सबसे बड़ा हथियार है।

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